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हमसफर एवरेस्ट - बिना यात्रा किये रोमांचक सफर का अहसास कराती किताब

स्कूल के दिनों में शायद पहली कक्षा में रहे होंगे जब हिंदी की पुस्तक में पाठ था मेला। इसमें तीन दोस्तों के मेले घूमने का वर्णन था। जब छठी कक्षा में आये तब अंग्रेजी में लेसन था ए ट्रिप टू डैम, आगे की कक्षाओं में काका कालेलकर की दक्षिण गंगा गोदावरी पढ़े। हिंदी गद्य लेखन की कला यात्रा वर्णन से ये मेरा पहला परिचय था। बाद में अज्ञेय की यूरोप यात्रा को एक बूंद सहसा उछली में , डॉ हीरालाल बछोतिया को नहीं रुकती नदी में पढ़ा। महादेवी, बच्चन जी ने इस विधा की गहराइयों को समझाया तो अमृत लाल वेगड़ जी की नर्मदा यात्राओं ने यात्रा वर्णन की भाषा, वर्णन के तरीके और खुद के मन को कलम से उकेरने की बात सिखाई। Pustak Samiksha Hamsafar Everest
आज जब नीरज मुसाफिर की हमसफर एवरेस्ट खत्म की तो लगा नई हिंदी के नई पीढ़ी के इस घुमक्कड़ के मन, दिमाग और कलम में पुराने और नई पीढ़ी के घुमक्कड़ों की सभी खासियतों का घालमेल है।

बाइक से नेपाल और फिर एवरेस्ट बेस कैम्प तक की ट्रेकिंग का आंखों देखा हाल है ये किताब। अपनी पत्नी के साथ हिमालय के इस सबसे चर्चित इलाके की ट्रेकिंग को किताब में समेटकर लेखक ने यहां के लोग, घोर व्यावसायिकता के बीच बसी मानवता, कठिन जीवन और प्राकृतिक सौंदर्य को कुछ ऐसा समेटा है कि पढ़ते हुए इस पूरे रोमांच को महसूस किया जा सकता है। लगता है कि सब आंखों के सामने हो रहा है। इस किताब की खासियत है इसकी भाषा। न कठिन शब्द न जबरन ज्ञान पेलने की कोशिश। जो देखा वो लिख दिया। अमृतस्य नर्मदा में वेगड़ जी लिखते है कि वे तो नर्मदा के कर्मचारी है उनका काम करते है। इस किताब को पढ़कर भी ऐसा लगता है कि प्रकृति ने अपने काम के लिए भी नीरज को चुना है। 

हरिऔध जी की ब्रज की संध्या में जिस तरह कविता के रूप में ब्रज की शाम का वर्णन है उसी तरह इस किताब में हिमालय को उसकी पूरी आभा, उसके ख़ौफ़, उसकी कठिनाई और उसकी सुंदरता के साथ महसूस किया जा सकता है। इस किताब में एक कमी है लेखक ने बेस कैम्प तक की यात्रा की लेकिन बेस कैम्प पहुंचने के बाद ज्यादा वर्णन नहीं किया। बेस कैम्प, वहां के संघर्ष, पर्वतारोहियों के जज्बे,उनकी तैयारियों और वहां के जीवन को इस किताब में जगह मिलती तो बात और बेहतर होती। वैसे यहां की यात्रा किये बिना उम्र भर के लिए इस यात्रा के सहभागी होने का अहसास कराती है ये किताब।

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