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क्यों नहीं तू बन जाती

नहीं जानता की तू क्या चाहती है

पर ये जानता हूँ मेरा प्रेम निर्मल है

जीवन में उतार चढ़ाव कहा नहीं आते

पर रथ के पहिये यूँ नहीं साथ छोड़ जाते |

क्यों नहीं तू बन जाती नदिया

जहाँ मेरा अस्तित्व विलीन हो जाए

क्यों नहीं तू बन जाती तू वो बीणा

जहाँ मेरा सर्वस्व तल्लीन हो जाये |

मेरे जीवन का आइना तुम बन जाओ

जहाँ मेरा प्रतिबिम्ब भी तुम्हारा हो

मेरा दिन मेरी रात तुम बन जाओ

जहाँ मेरा अंत और आरंभ भी तुम्हारा हो |

 

                   – डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

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